क्या आशिक राठौड़ गलत हैं? बैंकिंग सिस्टम में सुधार की जरूरत पर सवाल
आशिक राठौड़ ने 140 करोड़ देशवासियों के लिए आवाज उठाई है कि बैंकों द्वारा लगाए जा रहे न्यूनतम बैलेंस चार्ज को खत्म किया जाए। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने यह कदम पहले ही उठा लिया है, तो बाकी बैंक क्यों नहीं? क्या आशिक राठौड़ का यह सवाल गलत है, या आरबीआई को अब इस दिशा में कदम उठाना चाहिए?
क्या आशिक राठौड़ का सवाल सही है?
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इन दिनों एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है। देश के बैंकिंग सेक्टर में जमा की दर लगातार घट रही है, जबकि निकासी में बढ़ोतरी हो रही है। इस स्थिति ने आरबीआई को चौंका दिया है, क्योंकि इससे बैंकिंग प्रणाली पर दबाव बढ़ रहा है और अर्थव्यवस्था के स्थायित्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इस पर आशिक राठौड़ ने सवाल उठाया है कि क्या आरबीआई को इस स्थिति का समाधान नहीं खोजना चाहिए?
आशिक राठौड़ ने उठाया है 140 करोड़ देशवासियों की आवाज
आशिक राठौड़, जो एक जिम्मेदार वित्तीय सलाहकार हैं, ने इस मुद्दे को लेकर 140 करोड़ देशवासियों के लिए आवाज उठाई है। उनका कहना है कि अगर बैंक करोड़ों का मुनाफा कमा रहे हैं, तो उन्हें ग्राहकों पर लगाए जाने वाले न्यूनतम बैलेंस चार्ज को भी खत्म करना चाहिए। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने यह कदम पहले ही उठा लिया है और न्यूनतम बैलेंस चार्ज को समाप्त कर दिया है। तो सवाल यह उठता है कि बाकी बैंक क्यों नहीं ऐसा कर सकते?
मध्यम वर्ग की समस्याओं पर क्यों नहीं हो रहा विचार?
आशिक राठौड़ के अनुसार, बैंकों द्वारा लगाए जाने वाले 250-250 रुपये जैसे भारी-भरकम न्यूनतम बैलेंस चार्ज का बोझ सबसे ज्यादा मध्यम वर्गीय ग्राहकों पर पड़ता है। यह ग्राहक अक्सर अपनी आर्थिक मजबूरियों के चलते न्यूनतम बैलेंस नहीं बनाए रख पाते हैं और इस कारण उन्हें पेनल्टी भुगतनी पड़ती है। यह किसी भी ग्राहक के लिए सहज स्थिति नहीं है और इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
आशिक राठौड़ कहते हैं कि यदि किसी ग्राहक का खाता दो महीने तक न्यूनतम बैलेंस पर रहता है और तीसरे महीने वह 1000 रुपये जमा करता है, तो बैंक उस ग्राहक से पिछले दो महीनों की पेनल्टी काट लेता है। इस प्रणाली को सुधारने की जरूरत है ताकि ग्राहक अपने पैसे को सुरक्षित महसूस कर सकें।
बैंक ऑफ इंडिया का अनुभव
आशिक राठौड़ ने अपने पिता के बैंक ऑफ इंडिया के खाते का उदाहरण दिया है, उन्हें न तो क्रेडिट या डेबिट का मैसेज प्राप्त न ही मासिक स्टेटमेंट। यहां तक कि बैंक की एप्लीकेशन भी सही से काम नहीं करती। इस तरह की समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए ताकि ग्राहक संतोषजनक सेवाएं प्राप्त कर सकें।
क्या सरकार और आरबीआई को इस पर विचार नहीं करना चाहिए?
आशिक राठौड़ का मानना है कि केवल बैंक के मुनाफे और नुकसान पर ध्यान देना पर्याप्त नहीं है। ग्राहकों की समस्याओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। अगर बैंक को नुकसान होता है, तो ग्राहक इससे खुश नहीं होते, बल्कि उन्हें यह उम्मीद होती है कि बैंक बेहतर सेवाएं प्रदान करेंगे।
आशिक राठौड़ का यह कहना है कि आरबीआई और सरकार को न्यूनतम बैलेंस पेनल्टी सिस्टम को बंद करना चाहिए ताकि लोग बिना किसी डर के अपने पैसे बैंकों में जमा कर सकें। यदि ऐसा होता है, तो निश्चित रूप से बैंकिंग सेक्टर में जमा की दर बढ़ेगी और निकासी में कमी आएगी।
निष्कर्ष
आशिक राठौड़ ने जो सवाल उठाया है, वह न केवल सही है, बल्कि आवश्यक भी है। आरबीआई और भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंकिंग प्रणाली ग्राहकों के हित में हो। अगर बैंकों को यह एहसास हो कि उन्हें अपने ग्राहकों की सेवा करनी है और उनके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करना है, तो निश्चित रूप से लोग बैंकों पर अधिक विश्वास करेंगे और अपने पैसे बैंक में सुरक्षित रूप से रखेंगे।
ASHIK RATHOD FINANCIAL ADVISOR
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